जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जयंती | 3 अगस्त
   
 

जो पर-पदार्थ के इच्छुक हैं,
वे चोर नहीं तो भिक्षुक हैं।
हमको तो 'स्व' पद-विहीन कहीं
है स्वयं राज्य भी इष्ट नहीं।
-मैथिलीशरण गुप्त

3 अगस्त को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती होती है। हर वर्ष इसे 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1886 चिरगाँव, झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। ये भारतीय संस्कृति एवं वैष्णव परंपरा के प्रतिनिधि कवि हैं जिन्होंने पचास वर्षों तक निरंतर काव्य सृजन किया।

गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे। पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था।

लगभग 40 ग्रंथ रचे तथा खडी बोली को सरल, प्रवाहमय और सशक्त बनाया। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं- 'भारत-भारती, 'साकेत, 'यशोधरा, 'कुणाल-गीत, 'जयद्रथ-वध, 'द्वापर, 'पंचवटी तथा 'जय भारत। 'साकेत पर इन्हें 'मंगला प्रसाद पारितोषिक मिला था। आप 'पद्म-भूषण के अलंकरण से सम्मानित हुए। 1952 से 1964 तक आप राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे।

मैथिलीशरण गुप्त की जयंती पर 'भारत-भारती' पढ़िए।

आज गुप्तजी के जन्म-दिवस पर उनकी एक सुप्रसिद्ध रचना:

सखि, वे मुझसे कहकर जाते

 
 
 
 

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