विष्णु नागर का जन्म 14 जून 1950 को हुआ था। आप शाजापुर (मध्यप्रदेश) में पले-बढ़े व वहीं शिक्षा प्राप्त की।
दिल्ली में 1971 से स्वतन्त्र पत्रकारिता आरंभ की । 'नवभारत टाइप्स' में पहले मुम्बई तत्पश्चात् दिल्ली में विशेष संवाददाता सहित विभिन्न पदों पर रहे। आपने जर्मन रेडियो, 'डोयचे वैले' की हिंदी सेवा का 1982-1984 तक संपादन किया। आप 'हिंदुस्तान' दैनिक के विशेष संवादाता रहे। 2003 से 2008 तक हिंदुस्तान टाइम्स की लोकप्रिय पत्रिका 'कादंबिनी' के कार्यकारी संपादक रहे। दैनिक 'नई दुनिया' से भी जुड़े रहे। # आज नागर जी के जन्म-दिवस पर उनकी कुछ कविताएं:
दस पैसे का सिक्का जिस दिल्ली में पच्चीस पैसे का सिक्का भी आजकल नहीं दीखता उसी दिल्ली में मेरे पास दस पैसे का सिक्का न जाने कहां से चला आया
उस सिक्के को भिखारी को देकर उस पर दया नहीं की जा सकती थी यमुना में सिक्का फेंक कर पुण्य कमाने की इच्छा मेरी कभी रही नहीं जिसे बाजार में चल सकना चाहिए, उसे पुरावस्तु की तरह संभालना मुझे गंवारा नहीं
वह सिक्का है इसलिए उसे भूलना मुश्किल है और याद करना तकलीफदेह उसे मैं कविता में तो ले आया, मगर जिन्दगी में ले जाना मुश्किल है।
# मैं और कुछ नहीं कर सकता था मैं क्या कर सकता था किसी का बेटा मर गया था सांत्वना के दो शब्द कह सकता था किसी ने कहा बाबू जी मेरा घर बाढ़ में बह गया तो उस पर यकीन करके उसे दस रुपये दे सकता था किसी अंधे को सड़क पार करा सकता था रिक्शावाले से भाव न करके उसे मुंहमांगा दाम दे सकता था अपनी कामवाली को दो महीने का एडवांस दे सकता था दफ्तर के चपरासी की ग़लती माफ़ कर सकता था अमेरिका के खिलाफ नारे लगा सकता था वामपंथ में अपना भरोसा फिर से ज़ाहिर कर सकता था वक्तव्य पर दस्तख़त कर सकता था और मैं क्या कर सकता था किसी का बेटा तो नहीं बन सकता था किसी का घर तो बना कर नहीं दे सकता था किसी की आँख तो नहीं बन सकता था रिक्शा चलाने से किसी के फेफड़ों को सड़ने से रोक तो नहीं सकता था
और मैं क्या कर सकता था- ऐसे सवाल उठा कर खुश हो सकता था मान सकता था कि अब तो सिद्ध है वाकई मैं एक कवि हूँ और वक़्त आ चुका है कि मेरी कविताओं के अनुवाद की किताब अब अंग्रेजी में लंदन से छप कर आ जाना चाहिए।
- विष्णु नागर
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