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होली - मैथिलीशरण गुप्त
जो कुछ होनी थी, सब होली!
धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।
आँखों में सरसों फूली है,
सजी टेसुओं की है टोली।
पीली पड़ी अपत, भारत-भू,
...
निवेदन
राम, तुम्हें यह देश न भूले,
धाम-धरा-धन जाय भले ही,
यह अपना उद्देश न भूले।
निज भाषा, निज भाव न भूले,
निज भूषा, निज वेश न भूले।
प्रभो, तुम्हें भी सिन्धु पार से
सीता का सन्देश न भूले।
-मैथिलीशरण गुप्त
[स्वदेश संगीत ]
...
रवि
अस्त हो गया है तप-तप कर प्राची, वह रवि तेरा।
विश्व बिलखता है जप-जपकर, कहाँ गया रवि मेरा?
- मैथिलीशरण गुप्त
[रबीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ]
भारत माता
(राष्ट्रीय गीत)
जय जय भारत माता!
तेरा बाहर भी घर-जैसा रहा प्यार ही पाता॥
ऊँचा हिया हिमालय तेरा,
उसमें कितना दरद भरा!
फिर भी आग दबाकर अपनी,
रखता है वह हमें हरा।
सौ सौतो से फूट-फूटकर पानी टूटा आता॥
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जल, रे दीपक, जल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
जिनके आगे अँधियारा है, उनके लिए उजल तू॥
जोता, बोया, लुना जिन्होंने,
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने,
बत्ती बँटकर तुझे संजोया, उनके तप का फल तू।
जल, रे दीपक, जल तू॥
अपना तिल-तिल पिरवाया है,
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