पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय सहस्रगुना अच्छी है। - अज्ञात।

 निवेदन

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

राम, तुम्हें यह देश न भूले,
धाम-धरा-धन जाय भले ही,
यह अपना उद्देश न भूले।
निज भाषा, निज भाव न भूले,
निज भूषा, निज वेश न भूले।
प्रभो, तुम्हें भी सिन्धु पार से
सीता का सन्देश न भूले।

-मैथिलीशरण गुप्त
  [स्वदेश संगीत ] 

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