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स्कूल में लग जाये ताला | बाल कविता
अब से ऐसा ही हो जाये
भले किसी को पसंद न आये ...
स्कूल में लग जाये ताला
दें बस्तों को देश निकाला
होमवर्क जुर्म घोषित हो,
कोई परीक्षा ले न पाये ...
दिन भर केवल खेलें खेल
जो डाँटे उसको हो जेल
...
कुछ झूठ बोलना सीखो कविता!
कविते!
कुछ फरेब करना सिखाओ कुछ चुप रहना
वरना तुम्हारे कदमों पर चलनेवाला कवि मार दिया जाएगा खामखां
महत्वपूर्ण यह भी नहीं कि तुम उसे जीवन देती हो
अमरत्व भी
पर मरने के बाद
कविता फिलहाल उसे
तुम जरा-सा झूठ दे दो
...
एक अदद घर
जब
माँ
नींव की तरह बिछ जाती है
पिता
तने रहते हैं हरदम छत बनकर
भाई सभी
उठा लेते हैं स्तम्भों की मानिंद
बहन
हवा और अंजोर बटोर लेती है जैसे झरोखा
बहुएँ
मौसमी आघात से बचाने तब्दील हो जाती हैं दीवाल में
...
नया साल आया
नया साल आया
स्वागत में मौसम ने
नया गीत गाया
डाल-डाल झुकी हुई
महक उठे फूल-फूल
पवन संग पत्ते भी
देखो रहे झूल झूल
ईर्ष्या को त्याग दें
सबको अनुराग दें
सुख-दुख में साथ रहें
हाथों में हाथ में दें
आओ नए साल में
...
खौफ़
जाने-पहचाने पेड़ से
फल के बजाय टपक पड़ता है बम
काक-भगोड़ा राक्षस से कहीं ज्यादा खतरनाक
अपना ही साया पीछा करता दीखता
किसी पागल हत्यारे की तरह
नर्म सपनों को रौंद-रौंद जाती हैं कुशंकाएँ
वालहैंगिंग की बिल्ली तब्दील होने लगती है बाघ में
इसके बावजूद
...
अंततः
बाहर से लहूलुहान
आया घर
मार डाला गया
अंततः
-जयप्रकाश मानस
[ अबोले के विरुद्ध, शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली ]
जयप्रकाश मानस की दो बाल-कविताएं
एक बनेंगे
हम हैं बच्चे
मन के सच्चे
आगे कदम बढ़ाएंगे,
भूले भटके
राह में अटके
सबको राह दिखाएंगे
नहीं लड़ेंगे
एक बनेंगे
मिलकर 'जन गण' गाएंगे
नहीं डरेंगे
टूट पड़ेंगे
न संकट से घबराएंगे।
-जयप्रकाश मानस
...
पंछी का मन दुखता | बाल-कविता
कुआं है गांव में
कुएं में घटता पानी।
सोचकर मछली को
है बड़ी हैरानी।
घास है जंगल में
घास भी मुरझाई।
सोचकर गायों की
आँखें भर आईं।
पेड़ है पर्वत में
पेड़ भी लो सूखता।
सोचकर पंछी का
मन बहुत दुखता।
-- जयप्रकाश मानस
[जयप्रकाश मानस की बाल कविताएं, यश पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली]
...
जंगल में पढ़ाई | बाल-कविता
एक दिन सभी पंछी ने सोचा
हम भी करें पढ़ाई।
सुख-दुःख की कथा बांच लें
बूझें शब्द अढ़ाई।
मोर पपीहा सुग्गा मैना
तीतर बटेर भी आए।
बरगद पर लग गई शाला
"अ" से अनार गाए।
सबसे बुद्धिमान समझ
कौआ को चुना गुरुजी।
...
उपस्थिति
व्याकरणाचार्यों से दीक्षा लेकर नहीं
कोशकारों के चेले बनकर भी नहीं
इतिहास से भीख माँगकर तो कतई नहीं
नए शब्दों के लिए
नापनी होंगी दिशाएँ
फाँकने पड़ेंगे धूल
सहने पड़ेंगे शूल
अभी
...
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