Author's Collection
Total Number Of Record :5कबीर वाणी
हिन्दुअन की हिन्दुआई देखी
तुरकन की तुरकाई !
सदियों रहे साथ, पर दोनों
पानी तेल सरीखे ;
हम दोनों को एक दूसरे के
दुर्गुन ही दीखे !
घर-घर नगर-नगर में हमने
निर्दय अगन जलाई !
हम दोनों के नाम अलग
पर काम एक से, भाई !
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गाँव की धरती
चमकीले पीले रंगों में अब डूब रही होगी धरती,
खेतों खेतों फूली होगी सरसों, हँसती होगी धरती!
पंचमी आज, ढलते जाड़ों की इस ढलती दोपहरी में
जंगल में नहा, ओढ़नी पीली सुखा रही होगी धरती!
इसके खेतों में खिलती हैं सींगरी, तरा, गाजर, कसूम;
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जो समर में हो गए अमर
जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में
गा रही हूँ आज श्रद्धा-गीत धन्यवाद में
जो समर में हो गए अमर ...
लौट कर न आएंगे विजय दिलाने वाले वीर
मेरे गीत अंजली में उनके लिए नयन-नीर
संग फूल-पान के
रँग हैं निशान के
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ग्राम चित्र
मक्का के पीले आटे-सी
धूप ढल रही साँझ की!
देवालय में शंख बज उठा,
घंट-नाद ध्वनि झांझ की!
गाय रंभाती आती, ग्वाला
सेंद चुरा कर खा रहा!
पथवारी पर बैठा जोगी
गीत ज्ञान के गा रहा!
कहीं अकेले , कहीं दुकेले
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जीवन
घडी-घड़ी गिन, घड़ी देखते काट रहा हूँ जीवन के दिन
क्या सांसों को ढोते-ढोते ही बीतेंगे जीवन के दिन?
सोते जगते, स्वप्न देखते रातें तो कट भी जाती हैं,
पर यों कैसे, कब तक, पूरे होंगे मेरे जीवन के दिन?
कुछ तो हो, हो दुर्घटना ही मेरे इस नीरस जीवन में।
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