Author's Collection
Total Number Of Record :7विडम्बना
मैंने जन्मा है तुझे अपने अंश से
संस्कारों की घुट्टी पिलाई है ।
जिया हमेशा दिन-रात तुझको
ममता की दौलत लुटाई है ।
तेरे आँसू के मोती सहेजे हमेशा
स्नेह की सुगंध से महकायी है ।
उच्च विचारों की आचार-संहिता
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देसियों के विदेशी बुखार
जैसे ही दिवाली आने वाली होती है सोशल मीडिया पर एक पोस्ट तैरने लगती है कि चीन की बनी इलेक्ट्रिक झालर मत खरीदो, अपने यहाँ के कुम्हारों के बने दीये खरीद कर दिवाली पर जलाओ। ऐसा ही रक्षाबंधन के आसपास राखी के धागों को लेकर होता है पर क्या आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में विदेशी सामान की खरीद से बचना इतना आसान है? इन फेसबुक पोस्ट को देख कर लगता है कि हम भारतीयों की देशभक्ति एक मौसमी बुखार की तरह है जो कुछ खास मौसम में ही जोर मारती है।
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अंतर्द्वंद्व
ऐ मन! अंतर्द्वंद्व से परेशान क्यों है?
जिंदगी तो जिंदगी है, इससे शिकायत क्यों है?
अधूरी चाहतों का तुझे दर्द क्यों है?
मृग मारीचिका में आखिर तू फँसा क्यों है?
सपने सभी हों पूरे तुझे ये भ्रम क्यों है?
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यथार्थ
आँखें बरबस भर आती हैं,
जब मन भूत के गलियारों में विचरता है।
सोच उलझ जाती है रिश्तों के ताने-बाने में,
एक नासूर सा इस दिल में उतरता है।
भीड़ में अकेलेपन का अहसास दिल को खलता है,
जीवन की भुल-भुलैया में अस्तित्व खोया सा लगता है।
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आदिम स्वप्न
तुम मन में, तुम धड़कन में
जीवन के इक इक पल में
मोहपाश में बँधे तुम्हारे
हमें थाम कर बनो हमारे।
जीवन में तुमने रंग भरे हैं
होंठ गुलाबी और हुए हैं
देखो हमको भूल न जाना
प्राण हमारे तुम में पड़े हैं।
फूल-फूल गुलशन महके हैं
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अर्थहीन
कटु वचनों से आहत कर
पींग प्रेम की अर्थहीन है।
प्रेम समर्पण का नाम दूजा है
हक समझ पाना अर्थहीन है।
कटु प्रसंगों की स्मृतियाँ
जीवन पर्यन्त ढोना अर्थहीन है।
चिड़ियाँ जब खेत चुग गयीं
तब पछताना अर्थहीन है।
काँटों से मुश्किल जीवन पथ का
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उपन्यास अरुणिमा के अंश
रीता कौशल के उपन्यास ‘अरुणिमा’ के अंश
उपन्यास: अरुणिमा
लेखिका: रीता कौशल
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
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