जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
 
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म 27 मई 1894 (संवत् १६५१) को खैरागढ़, छत्तीसगढ़ ( छत्तीसगढ़ बनने से पूर्व मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपके पिताजी का नाम पुन्नालाल बख्शी व माताजी का नाम मनोरमा देवी था। आपका साहित्य व काव्य से अनुराग आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के अनुकूल ही था चूँकि आपके पितामह उमराव बख्शी अपने समय के सुप्रसिद्ध कवि थे। उमराव बख्शी के बड़े पुत्र दरियाव बख्शी भी अच्छे कवि थे व पदुमलाल के पिता पुन्नालाल बख्शी भी कविता करते थे।

१९१२ में मैट्रिक उत्तीर्ण करने के पश्चात आपने बनारस सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया व इसी समय लक्ष्मी देवी से आपका विवाह हुआ।

१९१६ में बी. ए. करने के पश्चात आप साहित्य सेवा में लग गए। आपकी रचनाएँ सर्वप्रथम 'हितकारिणी' के माध्यम से प्रकाश में आईं। 'हितकारिणी' में प्रकाशित आपकी कहानियों व कविताओं से ही आपका साहित्यिक परिचय मिलता है। १९१६ में आपकी कहानी 'झलमला' 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित हुई।

'सरस्वती' के संपादक पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी भी आपकी मौलिकता और मननशीलता से प्रभावित थे। द्विवेदी जी ने जब 'सरस्वती' पत्रिका से अवकाश लेने का मन बना लिया तो उन्होंने बख्शी जी को बुलाकर संपादन का कार्यभार उन्हें सौंप दिया।

कुछ वर्षों तक सरस्वती का संपादन करने के बाद आप पुनः खैरागढ़ चले गए व वहां एक शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे। बख्शी जी ने राजनांदगाँव राजकीय विद्यालय, कांकेर उच्च विद्यालय व खैरागढ़ उच्च विद्यालय में शिक्षक के रूप में सेवाएँ दीं। आप दिग्विजय महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे।

१९६० में सागर विश्विद्यालय के तत्कालिक कुलपति पं. द्वारका प्रसाद मिश्र द्वारा आपको डी. लिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई।

मध्यप्रदेश में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मलेन में सभापति रहे, १९५१ में डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में जबलपुर में आपका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया। १९६८ में मध्यप्रदेश शासन ने आपको विशेष सम्मान प्रदान किया।

विधाएँ : निबंध, कविता, नाटक, एकांकी।

मुख्य कृतियाँ:

कविता संग्रह: शतदल, अश्रुदल (खंडकाव्य)।

कहानी संग्रह: झलमला, अंजलि (ललित कथा संग्रह) ।

निबंध संग्रह : मेरे प्रिय निबंध, यात्रा, प्रबंध-पारिजात, पद्मवन, कुछ, मरकंद बिंदु, कुछ यात्री, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, तीर्थ सलिल, त्रिवेणी इत्यादि ।

आलोचना : हिंदी साहित्य विमर्श, विश्व साहित्य, साहित्य शिक्षा, हिंदी उपन्यास साहित्य, हिंदी कहानी साहित्य।

उपरोक्त के अतिरिक्त 'पंचपात्र' में आपके पद्य, आख्यायिकाएँ व निबंध संकलित हैं।

संपादन : सरस्वती ।

निधन : दिसंबर 1971, रायपुर (छत्तीसगढ़) । तिथि को लेकर मतभेद है अधिकतर स्थानों पर १८ दिसंबर दिया हुआ है किन्तु सरकारी दस्तावेजों में २८ दिसंबर दिया हुआ है।

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'

सन्दर्भ :
हमारे साहित्यकार, लेखक: श्रीव्यथित ह्रदय, प्रकाशक: रामप्रसाद एंड संस, आगरा, १९५४
डॉ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, राजनांदगांव जिला प्रशासन वेबसाइट

 

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बुढ़िया

बुढ़िया चला रही थी चक्की
पूरे साठ वर्ष की पक्की।

दोने में थी रखी मिठाई
उस पर उड़ मक्खी आई

बुढ़िया बाँस उठाकर दौड़ी
बिल्ली खाने लगी पकौड़ी।
झपटी बुढ़िया घर के अंदर
कुत्ता भागा रोटी लेकर।

बुढ़िया तब फिर निकली बाहर
...

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झलमला

मैं बरामदे में टहल रहा था। इतने में मैंने देखा कि विमला दासी अपने आंचल के नीचे एक प्रदीप लेकर बड़ी भाभी के कमरे की ओर जा रही है। मैंने पूछा, 'क्यों री! यह क्या है ?' वह बोली, 'झलमला।' मैंने फिर पूछा, 'इससे क्या होगा ?' उसने उत्तर दिया, 'नहीं जानते हो बाबू, आज तुम्हारी बड़ी भाभी पंडितजी की बहू की सखी होकर आई हैं। इसीलिए मैं उन्हें झलमला दिखाने जा रही हूँ।'

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उलहना

कहो तो यह कैसी है रीति?
तुम विश्वम्भर हो, ऐसी,
तो होतो नहीं प्रतीति॥

जन्म लिया बन्दीगृह में
क्या और नहीं था धाम?
काला तुमको कितना प्रिय है,
रखा कृष्ण ही नाम॥

पुत्र कहाये तो ग्वाले के,
बने रहे गोपाल।
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कृतघ्नता

चन्द्र हरता है
निशा की कालिमा,
हृदय की देता
उसे है लालिमा॥

किन्तु होकर लोक-
निन्दा से अशंक,
निशा देती है
उसे अपना कलंक॥

-पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी

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