Author's Collection
Total Number Of Record :4भारतीय | फीज़ी पर कविता
लम्बे सफर में हम भारतीयों को
कभी पत्थर कभी मिले बबूल
कभी मिट जाती कभी जम जाती
इतिहास के दर्पण पर धूल
जिस देश को अपनाया हमने
वह टूट रहा फिर एक बार
चमन यह बिगड़ा इस तरह
काँटे बन रहे सारे फूल
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कभी गिरमिट की आई गुलामी
उस समय फीज़ी में तख्तापलट का समय था। फीज़ी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जोगिन्द्र सिंह कंवल फीज़ी की राजनैतिक दशा और फीज़ी के भविष्य को लेकर चिंतित थे, तभी तो उनकी कलम बोल उठी:
कभी गिरमिट की आई गुलामी
कभी बाढ़ों ने मार दिया
कभी रम्बूका कू कर बैठा
कभी स्पेट ने वार किया।
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हम लोग | फीज़ी पर कहानी
"बिमल, सोचता हूँ मैं वापस चला जाऊं'', प्रोफेसर महेश कुमार ने निराशा भरे स्वर में कहा ।
मुझे उसके इस सुझाव का कारण पता था । फिर भी जान-बूझकर मैंने प्रश्न किया - "क्यों?"
''कल सूवा में गड़बड़ी हुई है । नैन्दी से कुछ आतंकवादियों ने एयर न्यूज़ीलैंड के विमान को हाइजैक करने की कोशिश की है । अगले सप्ताह तक पता नहीं यहाँ क्या कुछ न हो जाए ।''
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सात सागर पार
सात सागर पार करके भी ठिकाना न मिला
सौ साल प्यार करके भी निभाना न मिला
कई जनमों से तो बिछड़े थे एक मां से हम
दूसरी मां के आंचल में भी सिर छिपाना न मिला
पीढ़ियां खेली हैं ऐ देश तेरी गोद में
फिर भी तेरी ममता का हमें नजराना न मिला
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