Author's Collection
Total Number Of Record :5दिविक रमेश की चार कविताएँ
सुनहरी पृथ्वी
सूरज
रातभर
मांजता रहता है
काली पृथ्वी को
तब जाकर कहीं
सुनहरी
हो पाती है
पृथ्वी।
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पूरा आदमी
आकाश
चीख नहीं सकता
हम
चीख सकते हैं आकाश में।
कोई
क्या चीख सकता है
...
माँ गाँव में है
चाहता था
आ बसे माँ भी
यहाँ, इस शहर में।
पर माँ चाहती थी
आए गाँव भी थोड़ा साथ में
जो न शहर को मंजूर था न मुझे ही।
न आ सका गाँव
न आ सकी माँ ही
शहर में।
और गाँव
मैं क्या करता जाकर!
पर देखता हूँ
...
सोचेगी कभी भाषा
जिसे रौंदा है जब चाहा तब
जिसका किया है दुरूपयोग, सबसे ज़्यादा।
जब चाहा तब
निकाल फेंका जिसे बाहर।
कितना तो जुतियाया है जिसे
प्रकोप में, प्रलोभ में
वह तुम्हीं हो न भाषा।
तुम्हीं हो न
सहकर बलात्कार से भी ज़्यादा
...
माँ
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
दूध बिलोने से पहले
माँ
चक्की पीसती,
और मैं
घुमेड़े में
आराम से
सोता।
-तारीफ़ों में बंधी
मांँ
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा।
आज
जवान होने पर
एक प्रश्न घुमड़ आया है--
...