तुम्हें चाहिए सदा बहन-भाई से मिलकर रहना;
सबसे मीठे बोल-बोलना, नहीं वचन कटु कहना ।
मात-पिता-गुरु आदि बड़ों का मान सदा ही करना ;
पढ़ने में मन खूब लगाना, कुपथ नहीं पग धरना ।
जैसे छोटी नींव डालकर बड़ा महल बनवाते ;
वैसे विद्या-नींव डाल शिशु में मनुष्यता लाते ।
जो कुछ बचपन में पढ़ लोगे काम वही आवेगा;
भला बना सौ भला, बुरा सो बुरा नाम पावेगा।
कभी न बोलो झूठ, मान लो उत्तम सीख हमारी ।
बिना बात बक बक करने से होती है बस ख़्वारी ।
सदा डरो तुम बुरे काम से पाप न रक्खो मन में;
याद रहे, प्रभु व्याप रहा है सारे जड़-चैतन में।
रक्खो ध्यान उसी का हरदम सुधरे बुद्धि तुम्हारी;
सेवा करो पिता-माता की नाम कमाओ भारी।
- प्रो आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवजी
अनुवाद: बदरीनाथ भट्ट