राजी खुशी लिख दो ज़रा कि ख़त इंतज़ार करे बीते चैत्र अषाढ कि अब फागुन इंतज़ार करे
पूनो रीति अमास खड़ी है दुविधा विकट बड़ी है दिन गुज़रे साल बराबर जागी पलके आस करे
देखो तुलसी भी सूखन आयी ज्वार चढ़ा धरती को पँछी सारे छोड़ गये घर आंगन सूना इंतज़ार करे
बड़े दिन भये तुम्हें न देखे जतन बिफल भये सारे चली आओ गगरिया लेके कि पनघट इंतज़ार करे
टूटी माला बिखरे मोती हर कोई बँधावे धीर खुली मुट्ठी बंद न होगी फिर काहे इंतज़ार करे!
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