सड़क पर पड़ा हुआ है वो गरीब आदमी सिस्टम सा सड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
भूख अब भी जिसको तड़पाया करती है खुद से ही लड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
सत्ता में नेता के झूठे आश्वासनों के खिलाफ सच के लिये अड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
सर्दी गर्मी बारिश जिसको झुका नहीं पायी मजबूरी में अकड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
इस झूठी लोकशाही में अपने ही हालात में क़दम-क़दम रगड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
नफरतों के दौर में आज मुहब्बत ढूंढता हुआ ख्वाबों से भी झगड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
इंसानियत ज़िंदा है अभी तक उसके अंदर यूँ छोटा नहीं, बड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
ये दुनिया उसे कभी कहीं देख ही नहीं पाती खजाने सा कहीं गढ़ा हुआ है वो गरीब आदमी
जो नहीं कर पाता है मज़हब में फ़र्क़ कोई संविधान सा खड़ा हुआ है वो गरीब आदमी
- हिमांशु श्रीवास्तव, नयी दिल्ली poetishq@gmail.com
|