आओ एक खेल खेलते हैं - जोड़ना मैं रख लेता हूँ, तोड़ना तुम याद करना मैं रख लेता हूँ, और भुलाना तुम पुरानीं यादें मैं रख लेता हूँ, और नए अवसर तुम।
ऐसा करते हैं - जीत तुम रख लो, हार मैं रख लेता हूँ अच्छाइयां तुम रख लो, बेकारियां मैं रख लेता हूँ ।
दिल तुम रख लो, धड़कन मैं रख लेता हूँ खुशियां तुम रख लो, तड़पन मैं रख लेता हूँ ।
खूबसूरती तुम रख लो, शिकन मैं रख लेता हूँ तीर तुम रख लो, चुभन मैं रख लेता हूँ ।
नीड़ तुम रख लो, पीड़ मैं रख लेता हूँ भीड़ तुम रख लो, तन्हाई मैं रख लेता हूँ ।
शिकायतें तुम रख लो, खतायें मैं रख लेता हूँ हिफाजतें तुम रख लो, सजायें मैं रख लेता हूँ ।
मैं ‘हाँ' बन जाता हूँ, तुम ‘ना' बन जाओ और ‘शायद' को ‘मध्यरेखा' मान लेते हैं मैं ‘हाँ' से चल के आता हूँ, तुम ‘ना' से चल के आना और तय रहेगा 'शायद' की लकीर पे हम दोनों का मिल जाना।
- सूर्यजीत कुमार झा skumarjha718@gmail.com
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