हम उनकी गली से गुजरे, उन्होंने हमें देखा, वो मुस्कुराने लगे| फिर क्या था! हम रोज उसी गली से जाने लगे, उनके घर के आगे पीछे मंडराने लगे| उनके किस्से, दोस्तों को बढ़ा-चढ़ा कर सुनाने लगे|
इक बहाने से हमने पूछा इक पता, वो समझाने लगे| हम समझते हुए भी नासमझी दिखाने लगे| ऐसा करते-करते हम दूर रहते हुए भी पास आने लगे| उनको देख कर कलियाँ खिलती, उनके बिना फूल भी मुरझाने लगे|
हो गया इश्क मज़े ख़ूब आने लगे|
हम उनकी गली से फिर गुजरे, उन्होंनें हमें देखा तो फूल बरसाने लगे| पर जब उनकी माँ ने हमें देखा, तो गमले भी साथ में आने लगे|
- कुँवर राज "कविराज"
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