मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
दो ग़ज़लें  (काव्य)  Click to print this content  
Author:डॉ भावना

पर्वत पिघल गया तो पानी को आन क्यूँ है?
गुमसुम नदी के भीतर ऐसा उफान क्यूँ है?

अमृत के बदले जिसको केवल गरल मिला हो
तुम पूछते हो उसकी तीखी ज़ुबान क्यूँ है?

मेरा ही वोट लेकर बैठा है बनके नेता
उस आदमी की खातिर ऊँची मचान क्यूँ है?

सच जीतता है अक्सर, सब ऐसा मानते हैं
फिर कठघरे के भीतर झूठा बयान क्यूँ है?

बच्चे ये पूछते हैं मंदिर की सीढ़ियों पर
जो प्रार्थना है मेरी, उसकी अज़ान क्यूँ है?

- डॉ भावना
  ई-मेल: [email protected]

 

(2)

खिजां के साये से डर गये हैं
तभी ये पत्ते बिखर गए हैं

किसी ने आवाज़ दिल से दी है
वो चलते-चलते ठहर गये हैं

संजोये बैठे हैं जिन पलों को
वो लम्हें कब के गुज़र गये हैं

असर किसी का नहीं है अब तो
वो करके ऐसा असर गये हैं

उदास आँखों में उतरी परियां
तो इसके मोती संवर गए हैं

- डॉ भावना
  ई-मेल: [email protected]

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