यह जो बादल है, इक दिवाना है उसके रहने का क्या ठिकाना है
कोख मिलती है अब किराये पर अब तो सरोगेशी का जमाना है
भीड़ बाज़ार में बहुत है मगर खुद को बाज़ार से बचाना है
बह गये बाढ़ में हैं सैलानी इस कहर को भी अब भुनाना है
हर जगह अम्न की ही बातें हों प्यार के गांव को बसाना है
- डॉ० भावना
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