भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
वो जब भी | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:डा भावना

वो जब भी भूलने को बोलते हैं
किसी शीशे से पत्थर तोड़ते हैं

वो अपना सच छुपाने के लिए ही
हमेशा बात का रुख मोड़ते हैं

लपट उठती है अक्सर उस जगह पर
जहां पर आग में घी जोड़ते हैं

नयन गीले हुए जाते हैं हरदम
जो उसके वास्ते हम सोचते हैं

जिधर भी जायें हम, जाने वो कैसे
वो अपनी राह हमसे जोड़ते हैं

- डॉ० भावना

ई-मेल:  bhavnakumari52@gmail.com

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