भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
सफलता (काव्य)  Click to print this content  
Author:वंदना

ओ सफलते! आ मुझे अपना बना
हूँ मैं व्याकुल तुझको पाने के लिए।
मेरा हर पल बन गया चाहत तेरी
अब तो दुभर हो गया जीना मेरा।

तू निखट्टू कल्पना के लोक में
रहता व्याकुल मुझको पाने के लिए!
तेरा मेरा रास्ता जब है अलग
फिर भला संभव हो कैसे यह मिलन?

है अगर तुझगो मेरी सच्ची लगन
न गंवा पगले तू इक पल बैठकर!
उठ, तू अपने हाथ पैरों को हिला,
ना रहेगा फिर ये किस्मत का गिला।

- वंदना

 

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