दो पल को ही गा लेने दो । गाकर मन बहला लेने दो !
कल तक तो मिट जाना ही है; तन मन सब लुट जाना ही है;
लेकिन लुटने से पहले तो अपना रंग जमा लेने दो ।
दो पल को ही गा लेने दो। गाकर मन बहला लेने दो!
फूल खिलखिला कर हँसते हैं, फिर तो काँटे ही धँसते हैं;
काँटों से पहले फूलों को-- कुछ शृंगार सजा लेने दो ।
दो पल को ही गा लेने दो । गाकर मन बहला लेने दो!
जीवन क्या है? इक सपना है, सपने में सब कुछ अपना है;
अपनेपन की इन घड़ियों में लघु संसार बसा लेने दो ।
दो पल को ही गा लेने दो । गाकर मन बहला लेने दो !
- शिवशंकर वशिष्ठ
[साभार - गीली आँखें गीले गीत]
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