हिंदुस्तान को छोड़कर दूसरे मध्य देशों में ऐसा कोई अन्य देश नहीं है, जहाँ कोई राष्ट्रभाषा नहीं हो। - सैयद अमीर अली मीर।
दो पल | गीत (काव्य)  Click to print this content  
Author: शिवशंकर वशिष्ठ

दो पल को ही गा लेने दो ।
गाकर मन बहला लेने दो !

कल तक तो मिट जाना ही है;
तन मन सब लुट जाना ही है;

लेकिन लुटने से पहले तो
अपना रंग जमा लेने दो ।

दो पल को ही गा लेने दो।
गाकर मन बहला लेने दो!

फूल खिलखिला कर हँसते हैं,
फिर तो काँटे ही धँसते हैं;

काँटों से पहले फूलों को--
कुछ शृंगार सजा लेने दो ।

दो पल को ही गा लेने दो ।
गाकर मन बहला लेने दो!

जीवन क्या है? इक सपना है,
सपने में सब कुछ अपना है;

अपनेपन की इन घड़ियों में
लघु संसार बसा लेने दो ।

दो पल को ही गा लेने दो ।
गाकर मन बहला लेने दो !

- शिवशंकर वशिष्ठ

[साभार - गीली आँखें गीले गीत]

 

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश