मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
दो ग़ज़लें (काव्य)  Click to print this content  
Author:प्रगीत कुँअर

सबने बस एक नज़र भर देखा
हमने मंज़र वो ठहर कर देखा

फिर से दुनिया में लौट आये हम
हमने सौ बार भी मर कर देखा

उनमें ख़ुद को न ढूँढ पाये हम
उनके दिल में भी उतर कर देखा

वो न फिर राह में नज़र आये
हमने कई बार गुज़र कर देखा

जाने फिर भी न कभी टूट सके
इतने टुकड़ों में बिखर कर देखा

-प्रगीत कुँअर
, ऑस्ट्रेलिया

ई-मेल: prageetk@yahoo.com

 

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वक्त कैसे ये गुज़र जाता है
पैदा होते ही मर जाता है?

एक गुमनाम आदमी की तरह
है जो गुज़रा वो किधर जाता है?

छोड़ता ही नहीं ये अपने निशाँ
फूल तो फिर भी बिखर जाता है

आने वाले का करें स्वागत
तो
अगला पल फिर भी संवर जाता है

हम जो ठहरे अगर कहीं थककर
ये भी फिर साथ ठहर जाता है


-प्रगीत कुँअर
, ऑस्ट्रेलिया

ई-मेल: prageetk@yahoo.com

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