ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है दीवार-दर हो के भी घर सुनसान क्यूँ है मुश्किल है अब तो जीना एक पल भी तेरे बिन ये जान कर भी तू मुझसे यूँ अनजान क्यूँ है कमी नहीं है प्यार की इस जहाँ में देख लो पर हर शख्स यहाँ इतना परेशान क्यूँ है दोस्ती से हसीं कुछ नहीं है इस जहाँ में यारों हर दिल में यहाँ दुश्मनी का सामान क्यूँ है नहीं सोचा था रह जाउंगी मै भी कभी यूँ तन्हा सपनों के रास्तें में ये बड़ा शमशान क्यूँ है ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है दीवार-दर हो के भी घर सुनसान क्यूँ है
- डा अदिति कैलाश
|