भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
है वक्त बड़ा बलशाली (काव्य)  Click to print this content  
Author:प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'

वक्त ही दाता वक्त विधाता, वक्त बड़ा बलशाली
है वक्त बड़ा बलशाली, है ये वक्त बड़ा बलशाली
खेल निराले वक्त के सारे,हर इक अदा निराली
है वक्त बड़ा बलशाली, है ये वक्त बड़ा बलशाली

वक्त के चलते पहिये को, कोई रोंक न पाए
वक्त के आगे हम तुम क्या, हर कोई झुक जाए
ये नाच नचाये दुनिया को, स्वयं बजाये ताली
है वक्त बड़ा बलशाली, है ये वक्त बड़ा बलशाली

वक्त से बनते हैं सब राजा, वक्त से बने भिखारी
जो है जिसकी किस्मत में, मिलेगा बारी बारी
उड़ती पतंग ये दुनिया है, वक्त ने डोर संभाली
है वक्त बड़ा बलशाली, है ये वक्त बड़ा बलशाली

- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'

२)


तन्हाई में जीवन को तू दोष क्यूँ देता है प्राणी

सूनापन भी महफ़िल होगा बोल जरा मीठी वाणी
जो भी आया है जग में वो इकदिन जग से जायेगा
कुछ और रहे न रहे जग में प्यार यहाँ रह जायेगा
जाते हुए छोड़ जा साथी प्यार की अमर निशानी
तन्हाई में जीवन को तू दोष क्यूँ देता है प्राणी


हाय - हाय कर, हे मूरख ! क्यूँ जोड़े पाई - पाई
सोच जरा इक पल तू क्या जायेगी साथ कमाई
सेवा कर माँ-बाप की और बोल तू अमृतवाणी
तन्हाई में जीवन को तू दोष क्यूँ देता है प्राणी

प्यार है पूजा, प्यार तपस्या, प्यार है जीवन का मतलब
प्यार की भाषा सब सुनते हैं, प्यार में सबका तू तेरे सब
प्यार ही ये रामायण है, प्यार है गीता वाणी
तन्हाई में जीवन को तू दोष क्यूँ देता है प्राणी

- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'

३)


मेरा वतन

ये मेरा मुल्क है मेरा वतन
ये मेरा मुल्क है मेरा वतन
इसकी शान की खातिर हम
बांध के निकले हैं सर पे कफ़न
ये मेरा मुल्क है मेरा वतन

कदमो में लिए मंजिल को चले
तूफानों से मिलते हुए गले
नदियों का रुख मुड जाता है
पर्वत पल में झुक जाता है
हैं अपने इरादे इतने बुलंद
ये मेरा मुल्क है मेरा वतन

बूंद पसीने की पड़ते ही
सोना ये उगलने लगती है
पड़ती है जहाँ पे अपनी निगाहें
वादी वो महकने लगती है
कण कण में समाया है अपनापन
ये मेरा मुल्क है मेरा वतन

हम से अच्छा कोई दोस्त नहीं
दुशमन न कोई हम से बढकर
जो नज़र उठी दामन की तरफ
वो शीश गिरा धड़ से कटकर
लहराए तिरंगा ये धरती हो या गगन
ये मेरा मुल्क है मेरा वतन.........


- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'

४)


आज़ादी

आज़ादी के उन दीवानों को कर ले याद हम
कदम पथों पे उनके, लवों पे वन्देमातरम्
वन्देमातरम्, वन्देमातरम्, वन्दे.... मातरम्
लहराता हुआ तिरंगा ये हँसता हिंदुस्तान
लाने के लिए जाने कितने लोग हुए कुर्बान
हंस के फंदा चूम लिए जो सह गए हर सितम
आज़ादी के उन दीवानों को कर ले याद हम
पल भर में जख्म हजारों हंस के सह गए
टूटे न जिनके हौंसले कितने भी सितम हुए
अपने वतन के वास्ते जो कर गए हर करम
आज़ादी के उन दीवानों को कर ले याद हम
वन्देमातरम्, वन्देमातरम् वन्दे.... मातरम्

- प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'

ई-मेल: pradeep.tiwari115@gmail.com

 

 

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