झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला, मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला। गुरु ने कहा-फाँसी पर मैं चढूंगा, कहा चेले ने-फाँसी पर मैं मरूँगा।
हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों, छुटाए न छुटते लड़े ऐसे दोनों। बढ़े राजा फ़ौरन कहा बात क्या है? गुरु ने बताया करामात क्या है।
चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी, न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी। वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा, यह संसार का छत्र उस पर तनेगा।
कहा राजा ने बात सच गर यही गुरु का कथन, झूठ होता नहीं है कहा राजा ने फाँसी पर मैं चढूँगा इसी दम फाँसी पर मैं ही टँगूँगा।
चढ़ा फाँसी राजा बजा खूब बाजा प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा बजा खूब घर-घर बधाई का बाजा। थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा
-सोहन लाल द्विवेदी |