इस जग में भेजा था तूने तो जग का जीवन भी देता! जैसा मुझको हृदय दिया था, कुछ वैसे साधन भी देता!
राई-सी है दुनिया तेरी, पर्वत से हैं सपने मेरे; मेरी प्रतिभा के हारिल को सीमाहीन गगन भी देता!
सागर के प्यासे की भी क्या, ओस-कणों से प्यास बुझी है? प्रेम-प्यास मुझको दी थी, तो प्रेम सहित मधुकण भी देता!
तीनों लोक लीक से लगते, मेरी आकांक्षा के आगे; कलित-कामना की क्रीडा को विस्तृत-सा प्रांगण भी देता!
प्रस्तर की प्रतिमा में कब तक प्राण-प्रतिष्ठा होगी तेरी? कण-कण में जो तुझे देखते, ऐसे दिव्य-नयन भी देता !
नयनों में आश्चर्य भरा है, देख किसी की अद्भुत झांकी, जग होता प्रतिबिम्बित जिसमें, वह विचार-दर्पण भी देता!
सुनता हूँ तेरा निवास है मेरे सत् सौन्दर्य लोक में, अकुलाता यों ज्ञान भला क्यों प्रिय, जो तू दर्शन भी देता!
-शम्भुनाथ शेष (2 जून 1915 - 23 मई 1958)
हारिल = एक प्रकार की चिड़िया जो प्रायः अपने चंगुल में कोई लकड़ी या तिनका लिए रहती है। प्रस्तर की प्रतिमा = वह मूर्ति जो पत्थर से निर्मित हो। |