भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
इसलिए तारीख ने... | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:भवानी शंकर

इसलिए तारीख ने हमको कभी चाहा नहीं,
हम अकेले हैं हमारे पास चौराहा नहीं।

चौखटों के पार चमड़े का भरा बाजार है,
और कानों में हमारे इत्र का फाहा नहीं।

तख़्त चेहरों का कभी पलटेगा तो बात और है,
अब तलक तो हमने अपनी रूह को ब्याहा नहीं।

आज चोली है कहीं पर और दामन है कहीं,
और इस संबंध को किस किसने निर्वाहा नहीं।

दोस्तो, तुमने बहुत चाहा मगर हम क्या करें,
ज़िन्दगी बाक़ायदा होती कभी स्वाहा नहीं।

-भवानी शंकर

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