छरहरी काया मेरी जाने कहाँ छूट गई छाने लगा मुझ पे मोटापा मेरे राम जी
मारवाड़ी सेठ जैसा, पेट मेरा फूल गया कल को पड़े न कहीं छापा मेरे राम जी
रसभरे बैन कहाँ, घर में भी चैन कहाँ खो न बैठूँ किसी दिन आपा मेरे राम जी
तीनों बहुओं की देखा-देखी मेरी बुढ़िया भी मुझको पुकारती है पापा मेरे राम जी।
- अल्हड़ बीकानेरी |