भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
डॉ हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएं (काव्य)  Click to print this content  
Author:डॉ हर्षा त्रिवेदी

क्योंकि मैं ज़िंदा था 

उस समय में
जब असहमतियों के लिये
सारे दरवाजे बंद थे
नारों और विज्ञापनों ने
सत्य की हर संभावना को
काल कोठरी में ठूँस दिया था ।

ऐसे समय में
लगभग अकेले और निहत्थे
मैं खबरों /सूचनाओं की सड़ांध के बीच
साँस रोककर
मरने की हद तक
ज़िंदा था ।


(2)

असामाजिक समाज 

तथाकथित 
असामाजिक समाज 
इसी समाज द्वारा 
हाशिये पर धकियाये हुए 
उन लोगों का समाज है 
जो बेलौस नफ़रतों 
गलियों, तंगहाली के बावजूद 
ज़िंदा रहना चाहते हैं। 

वे ज़िंदा हैं 
अपनी घृणा से उपजे 
अपराध में 
जीने की ललक के साथ-साथ 
किसी बेहतर कल की 
उम्मीद में। 

बेहतर हो अगर 
इनके दायरों कों
समाज के दायरे में समेटा जाए
ताकि समाज के हाशिये पर 
असामाजिक जैसा 
कुछ न हो। 

 

(3)

गोपनीय समूह भाषायें 

वे समूह में 
विशिष्ट संवादों का 
हथियार हैं 
धंधे की 
रहस्यमय विद्या / कला भी। 

ये 
गोपनीय समूह भाषायें 
अपना समाजशास्त्र गढ़ती है 
असामाजिक 
संरचनाओं का 
समाजपरक समाजशास्त्र। 


-डॉ हर्षा त्रिवेदी 
 संपर्क : harsha.trivedi@vips.edu 

* डॉ हर्षा त्रिवेदी विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज-TC (गुरू गोविंद सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली से संबद् ) पीतमपुरा,दिल्ली में सहायक आचार्य हिंदी के रूप में 2018 से कार्यरत हैं। 

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