मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
ख़ुशी अपनी करे साझी (काव्य)  Click to print this content  
Author:प्राण शर्मा

ख़ुशी अपनी करे साझी बता किस से कोई प्यारे
पड़ोसी को जलाती है पड़ोसी की ख़ुशी प्यारे

तेरा मन भी तरसता होगा मुझ से बात करने को
चलो,हम भूल जायें अब पुरानी दुश्मनी प्यारे

तुम्हारे घर के रोशनदान ही हैं बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती करे क्या रोशनी प्यारे

सवेरे उठ के जाया कर बगीचे में टहलने को
कि तुझ में भी ज़रा आए कली की ताज़गी प्यारे

कभी कोई शिकायत है कभी कोई शिकायत है
बनी रहती है अपनों की सदा नाराज़गी प्यारे

कोई चाहे कि ना चाहे ये सबके साथ चलती है
किसी की दुश्मनी प्यारे किसी की दोस्ती प्यारे

कोई शय छिप नहीं सकती निगाहों से कभी इनकी
कि आँखें ढूंढ लेती हैं सुई खोई हुई प्यारे

-प्राण शर्मा
 यू॰ के॰

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