मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
आने वाले वक़्त के (काव्य)  Click to print this content  
Author:कंवल हरियाणवी

आने वाले वक़्त के आसार देख
आँख है तो वक़्त के उस पार देख।

बेवफा लोगों का यह बांका चलन
पीठ पर करते हैं कैसे वार देख।

कल की बासी सुर्खियों पर इक नज़र
गौर से अब आज का अख़बार देख।

मुस्कुराहट में छुपी है तल्ख़ियां
राख की परतों तले अंगार देख।

फिर करेंगे इस निजाम-नौ की बात
लूटता है घर को पहरेदार देख।

ज़िदगी के इस चलन में हर तरफ
फूल के सीने में उगता ख़ार देख। 

झील में जब मुस्कुराता है कमल
उसकी जानिब प्यार से इक बार देख। 

- कंवल हरियाणवी

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश