क्या होती है स्त्रियाँ?
घर की नींव में दफ़न सिसकियाँ और आहें हैं स्त्रियाँ। त्याग तपस्या और प्यार की राहें हैं स्त्रियाँ। हर घर में मोड़ी और मरोड़ी जाती हैं स्त्रियाँ परवरिश के नाटक में हथौड़े से तोड़ी जाती हैं स्त्रियाँ। एक धधकती संवेदना से संज्ञाहीन मशीनें बना दी जाती है स्त्रियाँ। सिलवटें, सिसकियाँ और जिस्म की तनी हुई कमानें है स्त्रियाँ। नदी-सी फूट पड़ती हैं तमाम पत्थरों के बीच स्त्रियाँ। बाहर कोमल अंदर सूरज सी तपती हैं स्त्रियाँ। हर नवरात्रों में देवी के नाम पर पूजी जाती हैं स्त्रियाँ नव रात्रि के बाद बुरी तरह से पीटी जाती हैं स्त्रियाँ। बहुत बुरी लगती हैं जब अपना हक़ मांगती हैं स्त्रियाँ। बकरे और मुर्गे के गोस्त की कीमतों पर बिकती हैं स्त्रियाँ। हर दिन सुबह मशीन सी चलती हैं स्त्रियाँ । दिन भर घर की धुरी पर धरती सी घूमती हैं स्त्रियाँ। कुलों के दीपक जला कर बुझ जाती हैं स्त्रियाँ। जन्म से पहले ही गटर में फेंक दी जाती हैं स्त्रियाँ। जानवर की तरह अनजान खूंटे से बांध दी जाती हैं स्त्रियाँ। 'बात न माने जाने पर 'एसिड से जला दी जाती हैं स्त्रियाँ । गुंडों के लिए 'माल 'मलाई 'पटाखा ''स्वादिष्ट 'होती हैं स्त्रियाँ। मर्दों के लिए भुना ताजा गोस्त होती हैं स्त्रियाँ। लज्जा ,शील ,भय ,भावुकता से लदी होती हैं स्त्रियाँ। अनगिनत पीड़ा और दुखों की गठरी होती हैं स्त्रियाँ। संतानों के लिए अभेद्द सुरक्षा कवच होती हैं स्त्रियाँ। स्वयं के लिए रेत की ढहती दीवार होती है स्त्रियाँ।
#
रिश्ता
एक अनाम रिश्ता। तुम्हारे मेरे बीच में। जमीन और आसमान जैसा यूँ तो इस गहराई को मापने के लिए कोई पैमान नही है। सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। तुम्हारी आंखों में सिमटे भाव से मेरे हृदय की धडकन से। मैं जानता हूँ, कि आकाश को छू लू।। लेकिन तुम्हें नही पा सकता। लेकिन तुम्हें तुम्हारे प्यार को अनुभव करने का अधिकार तो मुझे है। तुम कितने ही दूर चले जाओ लेकिन इस रिश्ते की डोर कभी नही टूटेगी। यही रिश्ता बांधे है। हम नदी के दो किनारों को हमारा जुदा होना जितना कटु सत्य है। उतना सत्य यह भी है कि हम एक है।
#
प्रेम
क्यूँ मुझे लगता है ऐसा मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हे मुझसे बेपनाह मुहब्बत हो गई है। क्योंकि जब भी मेरी याद तुम्हे आती है तुम गिनने लगती हो बाहर गमले में खिले फूलों को। जब भी मैं तुम्हारी यादों में मुस्कराता हूँ। तुम पिंजरे के पास जाकर गोरैया को पुचकारती हो। अक्सर मेरे फोटो को एकटक देख कर। करती हो अनकही बातें जो तुम कभी न कह सकी। बच्चों को अपने पास बैठा कर मेरी तरह। कोशिश करती हो उन्हें जिंदगी के पाठ पढ़ाने की। तुम्हारी हर अदा में हर बात में शामिल हो जाता हूँ मैं। अनजाने में तुम्हारे मुँह से मेरे शब्द निकलते हैं। जब भी मंदिर में जाती कान्हा की मूर्ति के सामने। बंद आँखों में मुझे देख सिसक लेती हो। लम्हा लम्हा सा बहता है जिंदगी का सफर। सब रिश्तों से आँख बचा कर रो लेती हो।
-डॉ सुशील शर्मा |