भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
रह जाएगा बाकी... (काव्य)  Click to print this content  
Author:नमिता गुप्ता 'मनसी'

एक न एक दिन खत्म हो जाएंगे ये रास्ते भी
रह जायेगा बाकी..'मिलना' किसी का ही !

यूं तो कह ही दिया था 'सब कुछ'.. बहुत कुछ
रह जायेगा बाकी..'किसी' से 'अनकहा' ही !

टालते कब तक, दहलीज से गुजरना ही पड़ा
रह जायेगा बाकी..किसी की राह तकना ही !

ठोकरें कुछ वक्त ने दी, खुद नासमझ से भी रहे
रह जायेगा बाकी..मेरा गिरकर संभलना ही !

एक दौर था वो, बहकर उसी में साथ चल दिए
रह जायेगा बाकी..मेरा खुद का 'ठहरना' ही !

लिखते रहे खुद को, कोई किस्सा समझकर ही
रह जायेगा बाकी..वो दिल का 'न कहना' ही !

यूं ही उम्र कटती रही, जीते रहे 'रिश्तें' सभी
'मनसी', रह जायेगा बाकी..हद से गुजरना ही !

नमिता गुप्ता 'मनसी'
उत्तर प्रदेश, मेरठ
ई-मेल : namitagupta2873@gmail.com

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश