भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
सरल हैं; कठिन है | हास्य-व्यंग्य (काव्य)  Click to print this content  
Author:चिरंजीत

सरल है बहुत चाँद सा मुख छुपाना,
मगर चाँद सिर का छुपाना कठिन है।
अगर नौकरी या कि धंधा मिला हो,
कि पहना हुआ सूट बढ़िया सिला हो,
सरल है बहुत ब्याह करना किसी से,
मगर ब्याह करके निभाना कठिन है।

अगर सीनियर हैं, सभी से ठनी है,
जरा तिकड़मी, भाग्य के भी धनी हैं,
सरल है बहुत अफसरी, किंतु घर में--
तनिक अफसरीयत दिखाना कठिन है।

सभी लोग सच्चे, दया-धर्मवाले,
कि ईमानवाले, हया शर्मवाले,
सरल नेक बनना व नेकी चुकाना,
मगर कर्ज लेकर चुकाना कठिन है।

अगर है चवन्नी लिया एक सिगरिट,
बची जो चवन्नी लिया पान झटपट,
सरल है रईसी दिखाना, अकड़ना,
मगर जेब खाली छुपाना कठिन है।

अगर है तबीयत जरा रंगवाली,
तुरत छंद में बाँध तुक भी भिड़ा ली,
सरल है बहुत, काव्य-रचना सरल है,
मगर काव्य-पुस्तक छपाना कठिन है।

-चिरंजीत

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