कब यह खुलेगी काली खिड़की, कब पछी उड़ जाएंगे ऐसा मौसम कब आएगा उड़ उड़ कर जब गाएंगे ! इस पिंजरे की हर तीली सपने में आन जलाती है, ध्यान से कब यह निकलेगी कब इससे रिहाई पाएंगे !
बरस रहे हैं आज तो हम पर ओले भी ओ' पत्थर भी, छितिज में हैं कुछ छितरे बादल उमड़ के वे भी आयेंगे ! आयेंगे औ' छा जायेंगे आकाश के कोने कोने में, पवन चलेगी ऐसी पंछी सब पिंजरे खुल जाएंगे !
-सैयद मुतलवी फ़रीदाबादी |