छुटा दे धब्बे दूँगी मोल।
धोबी ! अपनी चुंदरी लेकर आई तेरे घाट, देख कहीं लौटा मत देना मेरा मैला पाट। लगा दे अपना अद्भुत घोल। छुटा दे धब्बे दूँगी मोल।
साबुन, रीठा, रेह लगाये बैठ नदी के कूल, पर, ये ज्यों के त्यों ही पाये ना जानूँ क्या भूल ? कि है कुछ ढंग ही डाँवाडोल ? छूटा दे धब्बे दूँगी मोल ।
जिनके पीछे छींटे खाये वे करते उपहास, दुनिया दूर भगा देती है पाकर मेरी बास। पिटा है मैलेपन का ढोल। छुटा है धब्बे दूँगी मोल।
पटक न देना पत्थर पर तू इसमें गहरी मार, एक एक कर बिखर जाएंगे वरना भीने तार निरख लेना तह इसकी खोल। छुटा दे धब्बे दूँगी मोह।
प्रियतम के घर जाऊँगी मैं मार इसी की लाज, कर दे तनिक सहारे से तू मुझ दुखिया का काज। परख आई हूँ सबकी पोल। छुटादे धब्बे दूँगी मोल।
जीवन भर में बचा सकी हूँ दाने जो दो चार, वही गाँठ में बाँध चली हूँ देने को उपहार, इन्हीं को रखले जी में तोल । छुटा दे धब्बे ले ले मोल ।
-गोकुलचंद्र शर्मा |