भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
टैटू कैसे शुरू हुए? (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार ‘हैप्पी'

[ न्यूज़ीलैंड की लोक कथा ]

माओरी लोक-साहित्य में टैटू के धरती पर आने की एक रोचक कहानी है। ‘मोको’ अर्थात माओरी टैटू के बारे में एक माओरी किंवदंती है। यह एक प्राचीन प्रेम कहानी है।  सदियों पहले की बात है।  एक युवा माओरी योद्धा था, जिसका नाम मात्ताओरा (Mataora) था। उसकी पत्नी निवारिका एक अत्यंत सुंदर माओरी युवती थी। वह रारोहेंगा (Rarohenga) से थी। रारोहेंगा इस धरती से दूर पाताल में आत्माओं का देश था। माओरी मान्यता है कि व्यक्ति के देहांत के बाद आत्माएँ पाताल में चली जाती हैं।

एक बार मात्ताओरा का अपनी पत्नी निवारिका से झगड़ा हो गया।  मात्ताओरा ने गुस्से में निवारिका पर हाथ उठाया।  निवारिका ने अपने मायके और अपने देश में कभी पारिवारिक हिंसा नहीं देखी थी। वह बहुत क्षुब्ध हुई और वह मात्ताओरा से नाराज होकर चुपचाप अपने मायके चली गई। मात्ताओरा अपनी पत्नी के वियोग में बहुत दुखी हुआ। उसे बहुत पश्चाताप था। उसने निवारिका को मनाकर वापिस लाने की ठान ली।  उसने अपने चेहरे को और आकर्षक बनाने के लिए अपना चेहरा गोद लिया ताकि उसे देखकर निवारिका खुश हो जाए और वापिस लौट आए। 

वह निवारिका के पीछे उसके देश ‘रारोहेंगा’ पहुँच गया।  रारोहेंगा’ में गोदने का प्रचलन था और वहाँ के कलाकार उत्कृष्ट गोदना जानते थे। वहाँ जब लोगों ने उसका चेहरा देखा तो उन्हें यह बहुत निम्न-स्तरीय गोदना लगा। वह वहाँ उपहास का विषय बन गया लेकिन उसे तो केवल अपनी पत्नी की चिंता थी। उसपर लोगों के व्यंग्य-बाणों का कोई असर न हुआ। मात्ताओरा ने निवारिका और उसके परिवार से क्षमा याचना की और प्रण किया कि वह भविष्य में कभी ऐसा व्यवहार नहीं करेगा। निवारिका और उसके परिवार ने उसे क्षमा कर दिया।  

मात्ताओरा ने अपने ससुर ‘उएतोंगा’ (Uetonga) से गोदने की कला ‘ता मोको’ (tāmoko या tā moko) सिखाने का अनुरोध किया। ‘ता मोको’ विशिष्ट पारंपरिक माओरी गोदने को कहा जाता है। उएतोंगा ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया और इस प्रकार मात्ताओरा ने गोदने की कला सीखी । निवारिका ने कढ़ाई-बुनाई सीखी। जब वे दोनों वापिस धरती पर लौटे तो उन्होंने गोदना (मोको यानी माओरी टैटू) और कढ़ाई-बुनाई अपने देश के और लोगों को सिखाई। इस प्रकार ये कलाएं धरती प्रचलित और विकसित हुईं। 

-रोहित कुमार 'हैप्पी'
 न्यूज़ीलैंड

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