जीत जाएंगे (काव्य) |
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Author:प्रिंस सक्सेना |
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बंदिशों में ज़िन्दगी है, हर तरफ मुश्किल बड़ी है, स्वांस पर पहरा लगा है, ये संभलने की घड़ी है। हम नहीं इस दौर में आँसू बहाएंगे, इक न इक दिन जीत जाएंगे॥
एक न एक दिन इस धरा पर एक नई शुरुआत होगी, आसमां में देखना तुम फिर सुकून की रात होगी, दिल मे फिर विश्वास होगा होंठ पे मुस्कान होगी, गुनगुनाती बारिशों में खुशियों की फिर तान होगी। झूमकर नाचेंगे फिर हम मुस्कुरायेंगे एक न एक दिन जीत जाएंगे॥
जो समय के साथ जीना सीख लेगा वो जीएगा, विष शिवा के जैसे पीना सीख लेगा वो जीएगा, वो जीएगा जो मनुजता का सही उद्देश्य समझे, वो जीएगा जो प्रकर्ति का सही संदेश समझे। हम सभी मिलकर वही संदेश गाएंगे, इक न इक दिन जीत जाएंगे॥
एक अंधी दौड़ में बस हम तो दौड़े जा रहे थे, क्या मनुजता क्या मधुरता सब ही छोड़े जा रहे थे, आदमी का आदमी से प्यार था बस अर्थ का ही, नेह के विश्वास के बंधन को तोडे जा रहे थे। हो नही ऐसा कभी सौगंध खाएंगे एक न एक दिन जीत जाएंगे॥
--प्रिंस सक्सेना ई-मेल : princegsaxena@gmail.com |
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