शहरों में बस्तियां आबाद कितनी हैं गांव जैसी चौड़ी बुनियाद कितनी है
अच्छी मां दुनिया में बहुत हैं लेकिन दुनिया में अच्छी औलाद कितनी हैं।
सैंचुरी तो उसने बहुत बनाईं हैं मगर पारियां भी देखिए नाबाद कितनी हैं
कहने को क़ानून कड़े से कड़ा मगर लड़कियां फिर भी बर्बाद कितनी हैं
आंकड़े ज़ुल्मों का पैमाना नहीं कोई सचमुच में होती फरियाद कितनी हैं
ये बादलों के ढकने की बात छोड़िए लूं सूरज निकलने के बाद कितनी हैं
ग़ज़ल तो सारे शायर पढ़ते हैं 'ज़फ़र' ये देखना है किसकी दाद कितनी हैं
-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली-32 ईमेल : zzafar08@gmail.com
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