मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
हमन है इश्क मस्ताना (काव्य)  Click to print this content  
Author:कबीर

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या
रहें आजाद या जग में, हमन दुनिया से यारी क्या

जो बिछड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते
हमारा यार है हम में, हमन को इंतजारी क्या

खलक सब नाम जपने को, बहुत कर सिर पटकता है
हमन गुरु नाम सांचा है, हमन दुनिया से यारी क्या

न पल बिछड़ें पिया हमसे, न हम बिछड़ें पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या

कबीरा इश्क का नाता, दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाजुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या

-कबीर

उपर्युक्त ग़ज़ल को कबीर की रचना माना जाता है। इस नाते यह हिंदी की पहली ग़ज़ल भी कही जा सकती है।  हालांकि ‘बीजक’ में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। 
‘बीजक’ को कबीर का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है।  ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ ‘बीजक’ के ही भाग हैं।  कबीर की यह रचना न तो ‘बीजक’ में है और न ही ‘कबीर ग्रंथावली’ में लेकिन इसे कबीर की ही रचना बताया गया है।  

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