क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
सोचो (काव्य)  Click to print this content  
Author:राजीव कुमार सिंह

लाचारी का लाभ उठाने को लालायित रहते हैं।
सोचो यदि हम मानव हैं तो दानव किसको कहते हैं।

हम बेचें ईमान स्वयं का, दोष कहें सरकारों का।
कातिल बनकर कर्तव्यों का, माँग करें अधिकारों का।
साथ दे रहे हम क्यों बोलो, इन काले बाज़ारों का?
हमसे क्यों फल-फूल रहा है, तरु विपत्ति-व्यापारों का?

देख पराया शोषण हम सब मौन साध कर रहते हैं,
जब अपने पर बन आती, औरों को दोषी कहते हैं।
लाचारी का लाभ उठाने को लालायित रहते हैं।
सोचो यदि हम मानव हैं तो दानव किसको कहते हैं।।

प्रजातंत्र में यदि फैलाए खुद अनीति का जाल प्रजा।
क्यों ना अपनी गलती की फिर वो भी पाए आप सजा?
औरों का सुख छीन-छीन कर जो लेते हैं आज मज़ा,
उनसे कह दो- "करनी का फल मिलता है यह भूल न जा।"

‘जैसी करनी वैसी भरनी' इसीलिए तो कहते हैं,
जो गड्ढे खोदें वो भी इक दिन गड्ढे में ढहते हैं।
लाचारी का लाभ उठाने को लालायित रहते हैं।
सोचो यदि हम मानव हैं तो दानव किसको कहते हैं।।

सबको है मालूम चुनावी रैली हमको छलती है।
अचरज है फिर भी इसमें जनता जाने को मरती है।
पूँछ पकड़कर नेता जी की अंधी होकर चलती है।
भ्रष्टाचार, अनीति, अराजकता जनता भी जनती है।

अपनी गलती ना औरों के मत्थे मढ़ते रहते हैं,
जागरूक जन अपना अंतर्मन भी मंथन करते हैं।
लाचारी का लाभ उठाने को लालायित रहते हैं।
सोचो यदि हम मानव हैं तो दानव किसको कहते हैं।।

-डॉ. राजीव कुमार सिंह, भारत

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश