भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
मीठी यादें बचपन की  (काव्य)  Click to print this content  
Author:मोनिका वर्मा

बचपन के वो दिन बड़े याद आते है..
उन यादों में हम अक्सर खो जाते है
कागज की कश्ती में सवार
अक्सर हम बड़ी दूर निकल आते है
बचपन के वो दिन बड़े याद आते है।

तू-तू, मैं,मैं में उस नाव का आगे निकल जाना
ऐ दोस्त! तेरे भाव को न समझ पाना
बाद में तेरा मुझसे रूठ जाना
हाँ, आज भी वो बचपन के दिन बड़े याद आते है।

पास खड़े हो उस नाव को निहारना
ये कह कर खुद को समझना
तेरी नाव डूब गई मेरी नहीं
बचपन के दिन बड़े याद आते है।

फिर एक बारिश का इंतज़ार
उससे पहले ही एक कश्ती तैयार
शायद इस बार का सफर हो कुछ खास
बचपन के दिन बड़े याद आते है।

मोनिका वर्मा
पी-एच.डी शोधार्थी
प्रवासन एवं डायस्पोरा अध्ययन विभाग
म.गां.अ.हि.वि.वि वर्धा
ई-मेल : monikaverma1409@gmail.com

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश