बचपन के वो दिन बड़े याद आते है.. उन यादों में हम अक्सर खो जाते है कागज की कश्ती में सवार अक्सर हम बड़ी दूर निकल आते है बचपन के वो दिन बड़े याद आते है।
तू-तू, मैं,मैं में उस नाव का आगे निकल जाना ऐ दोस्त! तेरे भाव को न समझ पाना बाद में तेरा मुझसे रूठ जाना हाँ, आज भी वो बचपन के दिन बड़े याद आते है।
पास खड़े हो उस नाव को निहारना ये कह कर खुद को समझना तेरी नाव डूब गई मेरी नहीं बचपन के दिन बड़े याद आते है।
फिर एक बारिश का इंतज़ार उससे पहले ही एक कश्ती तैयार शायद इस बार का सफर हो कुछ खास बचपन के दिन बड़े याद आते है।
मोनिका वर्मा पी-एच.डी शोधार्थी प्रवासन एवं डायस्पोरा अध्ययन विभाग म.गां.अ.हि.वि.वि वर्धा ई-मेल : monikaverma1409@gmail.com |