जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल आके देखो मेरी यादों के जहाँ कैसे हैं
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं
-राही मासूम रज़ा (1 सितंबर 1927 - 15 मार्च, 1992)
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