मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
औरत फूल की मानिंद है  (काव्य)  Click to print this content  
Author:रश्मि विभा त्रिपाठी

फूल
किस कदर
घबरा रहा है,
एक
भंवरा इर्द-गिर्द
उसके मंडरा रहा है।

यूँ तो अज़ल से
ये ज़र्रे-ज़र्रे को
महकाता आया है,
अपनी ख़ुशबुएँ
सदियों से सब पे
ही लुटाता आया है।

मगर तोड़कर शाख़ से
उसको जुदा कर देने से,
उसके वजूद को फ़िर
बेरहमी से मसल देने से,
बहुत डरता है वो अपना
यही बुरा अंजाम सोच के।

औरत फूल की मानिंद है
कभी इंसान गर ये समझता,
यहाँ खिजाँ का मौसम न आता
ये गुलशन हमेशा ही आबाद रहता!

-रश्मि विभा त्रिपाठी
 बाह, जिला- आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत।

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