अपने अरमानों की महफ़िल में सजाले मुझको बेज़ुबाँ दीप हूँ कोई भी जला ले मुझको
नींद जलती हुई आँखों से चुराने वाले! तू गुनाहों की तरह दिल में छुपा ले मुझको
उम्र भर होश में आ जाए तो मेरा जिम्मा वो नशा हूँ कोई होठों से लगा ले मुझको
बेवफ़ा वक़्त की बेरहम हवाओं ठहरो हो गया गुल तो पुकारेंगे उजाले मुझको
कोई रूठी हुई तक़दीर समझकर 'राही' अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझको
--ए. डी राही [नई ग़ज़ल ] |