वो पहले वाली बात कहाँ? जब पंछी झूम के गाते थे फूल भरे उस अंचल में मदमस्त भौंरे इतराते थे।
जब घटा सुहानी बरसत थी बिन छाते भीगते जाते थे पेड़ों की डालें झुकती थीं बच्चों के झूले आते थे।
अब कब गर्मी और कब सर्दी एसी में पता नहीं चलता बारिश का मौसम भी देखो झटपट से फुर्र हो जाता है।
अब हरियाली, न खुशहाली अब तो मन मेरा रोता है पहले न तंग ये मौसम था अब कैसा सावन होता है!
-मोहम्मद आरिफ ई-मेल: marif9206@gmail.com
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