ख़्वाब
थे हमारे भी ! कुछ ख़्वाब, पर नींद नहीं आई; पलकों से बाहर ही रहे ख़्वाब ! मचलते हुए जाना है हमको भी पलकों के पीछे।
-राजेश 'ललित' ई-मेल: fearlessr56@gmail.com
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आज नहीं
जाना था हमको भी उसी महफ़िल में-- तन्हा थे जो आये भी; नहीं गये फिर हम भी: तन्हाईयों की भीड़ में, कि खो न जाएँ कहीं, सोचा, आज नहीं फिर कभी।
--राजेश 'ललित' ई-मेल: fearlessr56@gmail.com
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