घने-काले बादल झूमती-गाती मतवाली हवा मानो! पेड़ों को गुदगुदी कर जाती खिलखिलाते हुए पेड़ उसे पकड़ने, उसके पीछे-पीछे दूर तक दौड़े जाते, और पकड़ न पाने पर एक रूठे बच्चे की तरह ख़ूब मचल-मचल कर दाएँ-बाएँ अपना सिर हिलाते, और बादलों की गड़गड़ाहट में कुछ-कुछ कह जाते।
हवा फिर-फिर आती उन्हें मनाने और चुपचाप से उन्हें गुदगुदी कर फिर दौड़ जाती।
खेलना-खिलखिलाना, हँसना-मुसकराना, रूठना-मनाना, प्रकृति का यह प्यारा-सा खेल जाने-अनजाने ही ख़ुशियों की अनमोल सीख दे जाता जीवन इन्हीं छोटी-छोटी ख़ुशियों का नाम है काश, आज का इंसान समझ पाता!
--कोमल मेहंदीरत्ता ई-मेल: komal.mendiratta@nd.balbharati.org |