भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
अनमोल सीख (काव्य)  Click to print this content  
Author:कोमल मेहंदीरत्ता

घने-काले बादल
झूमती-गाती मतवाली हवा
मानो! पेड़ों को गुदगुदी कर जाती
खिलखिलाते हुए पेड़
उसे पकड़ने, उसके पीछे-पीछे
दूर तक दौड़े जाते, और
पकड़ न पाने पर
एक रूठे बच्चे की तरह
ख़ूब मचल-मचल कर
दाएँ-बाएँ अपना सिर हिलाते, और
बादलों की गड़गड़ाहट में
कुछ-कुछ कह जाते।

हवा फिर-फिर आती
उन्हें मनाने
और चुपचाप से उन्हें गुदगुदी कर
फिर दौड़ जाती।

खेलना-खिलखिलाना,
हँसना-मुसकराना,
रूठना-मनाना,
प्रकृति का यह प्यारा-सा खेल
जाने-अनजाने ही
ख़ुशियों की अनमोल सीख दे जाता
जीवन इन्हीं छोटी-छोटी ख़ुशियों का नाम है
काश, आज का इंसान समझ पाता!

--कोमल मेहंदीरत्ता
ई-मेल: komal.mendiratta@nd.balbharati.org

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