मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
माँ! तुम्हारी याद  (काव्य)  Click to print this content  
Author:कोमल मेहंदीरत्ता

अचानक पीछे से जाकर
माँ! तुम्हें गले से लगाकर
अपनी बाँहों में समेटकर
तुम्हें चौंकाकर मिलने का
वह सुखद अहसास
आज भी याद है!

वह छोटी-सी कृशकाया
जब-जब मुझसे मिलती, कहती
बेटी! जल्दी-जल्दी आया करो
मेरा न जाने क्या भरोसा
कब तक रहूँ !

आज यह सब कुछ बहुत याद आता है
जब तुम्हें कहीं नहीं खोज पाती हूँ
तुम्हारे हाथों की थाप
तुम्हारी गोद में रखे अपने सिर पर
आज भी महसूस कर जाती हूँ
और माँ !

तुम्हारी याद से कभी नहीं उबर पाना चाहती हूँ
तुम्हारे पीछे से आकर
तुम्हें फिर से चौंकाकर
एक बार फिर
अपने गले से लगाना चाहती हूँ।

--कोमल मेहंदीरत्ता
ई-मेल: komal.mendiratta@nd.balbharati.org

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