मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
एक दरी, कंबल, मफलर (काव्य)  Click to print this content  
Author:अशोक वर्मा

एक दरी, कंबल, मफ़लर, मोजे, दस्ताने रख देना
कुछ ग़ज़लों के कैसेट, कुछ सहगल के गाने रख देना

छत पर नए परिंदों से जब खुलकर बातें करनी हों,
एक कटोरे में पानी, दूजे में दाने रख देना

प्यार से तुम बच्चों को रखना, और अगर वे रूठे तो,
नन्ही परियों के कुछ किस्से नए-पुराने रख देना

घर में आए मेहमानों को घर-सा ही आराम मिले,
उनकी खातिर सब चीज़ों को ठौर-ठिकाने रख देना

हर पल खुशबू से चहकेगा, करते रहना इतना बस
परेशान चेहरों के लब पर कुछ मुस्कानें रख देना

-अशोक वर्मा

[साभार: दूसरा ग़ज़ल शतक, किताबघर प्रकाशन]

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश