दोनों ने सोचा कि साथ चलने में फ़ायदा है इसलिए ये भी, वे भी साथ दौड़ रहे हैं।
धारा दोनों के विचारों की है भिन्न-भिन्न किन्तु एक साथ जनता के हाथ जोड़ रहे हैं।
जनता ने दोनों दलों को ज़मीन दिखला दी दोनों एक दूसरे का साथ छोड़ रहे हैं।
चार दिन हुए जिनके ना हाथ छोड़ते थे अब उनके ही घुटनों को तोड़ रहे हैं।
-प्रवीण शुक्ल [हँसते हँसाते रहो, डायमंड बुक्स, 2006]
|